Ask these three hard but vital questions daily to yourself?
Question 1: What I will do if I have less time?
Question 2: What I will leave to my family, to this world?
Question 3: What will be your one last talk with yourself?
Answers will give you clarity in life.
क्या ये संभव है; एक वक्त में एक काम करना। जैसे ;
एक बार में वेबसाइट का एक टैब ही ओपन करना
खाना खाते समय ऑफिस के बारे में नहीं सोचना
ऑफिस में काम करते समय टैक्स के बारे में नहीं सोचना
एक्सरसाइज करते समय दोस्त से बात नहीं करना
गाड़ी चलाते समय ट्राफिक की चिंता नहीं करना,...आदि
सम्भव है। इसके लिए प्रैक्टिस करना होगा।
जब कोई लेखक स्थापित पब्लिशर के बिना स्वयं के खर्च पर अपनी बुक पब्लिश करता है तो उसे सेल्फ पब्लिशिंग कहा जाता है
“क्या मैं भी पब्लिशड लेखक बन सकता हूँ?”
यदि आप पढ़ने-लिखने का शौक रखते हैं, तो यह प्रश्न कई बार आपके मन में भी आया होगा, लेकिन पब्लिशर ढूंढना और पब्लिश करने के लिए उसे मनाना किसी चुनौती से कम नहीं है। रायल्टी तो भूल ही जाइए। भारत में अमूमन सभी पब्लिशर (अपवाद स्वरुप कुछ टॉप पब्लिशर्स को छोड़ दें) बुक पब्लिश करने के लिए लेखकों से ही पैसे मांगते हैं और बुक्स की बिक्री और रायल्टी में भी पारदर्शिता की कमी है। कुछ पब्लिशर बुक पब्लिशिंग के नाम पर 10 से 15 हजार रुपए में बुक कम्पोजिंग, कवर पेज डिजाईन, प्रूफ रीडिंग करके बुक की 5-10 डिजिटल प्रिंट करके देते हैं। लेखक भी खुश कि अब वह पब्लिशड आर्थर बन गया और बिज़नस मिलने से पब्लिशर भी खुश।
लेकिन यदि स्थापित पब्लिशर आपकी बुक को पब्लिश करके बड़े पैमाने पर वितरित करना है और आपको और बुक को प्रमोट करता है तो हमें परंपरागत पब्लिशिंग में ही जाना चाहिए।
मैंने अपनी पहली बुक ‘कनेक्टिंग द डॉट्स’(अंग्रेजी में) सेल्फ पब्लिशिंग की और थोड़ी से मेहनत और नेटवर्किंग करके शुरूआती कुछ महीने में ही इसकी पब्लिशिंग लागत निकालने में कामयाब रहा। वास्तव में मैंने किसी स्थापित पब्लिशर से संपर्क ही नहीं किया। पब्लिशिंग उद्योग से जुड़े होने के कारण मुझे सेल्फ पब्लिशिंग करने में ज्यादा परेशानी नहीं आई।
मैंने डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग ड्राप आउट होने के बाद अपना करियर न्यूज़ एजेंसी और कई अखबारों में रिपोर्टर और सब-एडिटर बतौर शुरू किया था। बाद में रूरल कॉल ब्लॉग स्टार्ट किया। लेखन किसी न किसी रूप में करते रहने से अपने अनुभवों को ‘कनेक्टिंग द डॉट्स’ बुक के रूप में लिखना आसान रहा।
‘कनेक्टिंग द डॉट्स’ पब्लिश करने के बाद कई संभावित लेखकों ने मुझसे पूछा कि “सेल्फ पब्लिशिंग ही क्यों? क्या आपको परंपरागत पब्लिशिंग हाउसेस से बुक पब्लिश नहीं करनी चाहिए था?”
इस सरल प्रश्न का सीधा जवाब नहीं हो सकता। इसे समझते हैं। सभी बुक्स; फिक्शन या नॉन फिक्शन को मार्केट में अलग पहचाने दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर वितरण और मार्केट करना होता है। अधिकांश लेखकों का लगता है कि बुक को मार्केट करना पब्लिशर्स का काम है। ऐसा नहीं है। पब्लिशर्स साल में कुछ ही बुक्स जिन पर उन्हें 100 परसेंट भरोसा होता है को मार्केट करने पर फोकस करते हैं। उदारण के लिए यदि एक पब्लिशर साल में 100 बुक्स पब्लिश करता है तो उसकी एक या दो बुक ही बहुत ज्यादा बिकेगी जबकि शेष बुक्स औसत या कम बिकेगी। ऐसे में यदि आप खुशकिस्मत हैं तो ही बात बनेगी।
अब यदि आपका पब्लिशर आपकी बुक को मार्केट करने की इच्छा नहीं रखता है तो आपके सामने एक ही विकल्प है; सेल्फ पब्लिशिंग।
सेल्फ पब्लिशिंग के फायदे
यदि मैन्यूस्क्रिप्ट तैयार है तो 7 से 10 दिन के अन्दर बुक बिक्री के लिए उपलब्ध हो सकती है। कुछ ही मिनट्स में ई-बुक पब्लिश कर ऑनलाइन सेल कर सकते हैं।
सेल्फ पब्लिशिंग में बुक की बिक्री का 50 से 60 फीसदी आय खुद रख सकते हैं जबकि पब्लिशर बुक बिकने के काफी समय बाद आपको 5 से 10 फीसदी रोयल्टी/कमीशन देगा और इसके लिए भी हो सकता है आपको उसे बहुत ज्यादा फालो करना पड़े।
सेल्फ पब्लिशिंग में आप प्रिंट ऑन डिमांड भी बुक प्रिंट कर सकते हैं।
सेल्फ पब्लिशिंग में कंटेंट पर लेखक का पूरा नियंत्रण होता है।
परंपरागत पब्लिशिंग से नुकसान
परंपरागत पब्लिशिंग करना बहुत मुश्किल है।
परंपरागत पब्लिशर को बुक पब्लिश करने के लिए मनाना कठिन है।
पब्लिशर मैनुस्क्रिप्ट लेने के कम से कम 6 महीने से 1 साल के बाद हाँ या नहीं कहेगा।
पब्लिशर नए/अनजान लेखक पर पैसा नहीं लगाना चाहता।
परंपरागत पब्लिशिंग में पब्लिशर बुक्स प्रिंट करने के बाद डिस्ट्रीब्यूटर को प्रिंट प्राइस से 50 से 60 फीसदी डिस्काउंट पर देता है। पब्लिशर और आर्थर के बीच 40 से 50 फीसदी में हिस्से के लिए निगोसियेशन होता है।
अनबिकी बुक्स को डिस्ट्रीब्यूटर पब्लिशर को लौटा देता है और अगली बुक जिसे पब्लिशर बेचना चाहता है में राशि एडजस्ट करता है ।
परंपरागत पब्लिशर बुक पब्लिश करने और उसे मार्केट करने के लिए आपसे ही बड़ी राशि मांग सकता है।
परंपरागत पब्लिशर लेखक पर एक तरह से जुआ खेलता है। पब्लिशर को बुक डिजाईन, कम्पोजिंग और प्रिंट में काफी खर्च करना होता है और आय निश्चित नहीं होती। ऐसे में वह आर्थर को एडवांस नहीं दे पाता और समय पर रायल्टी भी नहीं दे सकता।
बहुत सारे परंपरागत पब्लिशर बिक्री का सही आंकड़ा लेखक के साथ शेयर नहीं करते। एक तरह से पारदर्शिता की कमी रहती है।
बुक सेल्फ पब्लिश कैसे करें ?
मैं यहाँ यह मान कर चल रहा हूँ कि आपने अपनी बुक लिख ली है। मैन्यूस्क्रिप्ट को कम से कम तीन बार रिएडिट, प्रूफरीडिंग कर लिया है।
बहुत सारे लेखक सेल्फ पब्लिशिंग की आधी-अधूरी या बहुत सारी जानकारी होने से कंफ्यूज हो जाते हैं। मैंने यहाँ पर जो जानकारी दे रहा हूँ, इससे सेल्फ पब्लिशिंग की राह आसान हो जाएगी।
बुक डिजाईन
मैन्यूस्क्रिप्ट फाइनल होने के बाद इनर पेज कम्पोजिंग-डिजाईन, टाइटल, कवर पेज डिजाईन करना होता है।
सामान्यतः बुक की स्टैण्डर्ड साइज़ 6” (चौड़ाई) x 9” (लम्बाई) होती है। इस साइज़ की बुक की प्रिंटिंग अन्य साइज़ की बुक की प्रिंटिंग की तुलना में सस्ती पड़ती है। इस साइज़ की बुक को हाथ में पकड़कर पढना आसान होता है। बुक स्टोर की सेल्व्स में रखना आसान होता है। बड़ी साइज़ की पुस्तक को पकड़ने , रखने और ले जाने में मुश्किल होती है।
बुक के अन्य स्टैण्डर्ड साइज़ हैं
फिक्शन : 4.25" x 6.87", 5" x 8", 5.25" x 8", 5.5" x 8.5", 6" x 9"
बच्चों की पुस्तकें : 7.5" x 7.5", 7" x 10", 10" x 8"
टेक्स्ट बुक : 6" x 9", 7" x 10", 8.5" x 11"
नॉन-फिक्शन : 5.5" x 8.5", 6" x 9", 7" x 10"
मेमॉयर : 5.25" x 8", 5.5" x 8.5"
बुक टाइटल और कवर पेज
बुक का टाइटल और कवर पेज डिजाईन दोनों ही आकर्षक होने चाहिए और पहली नज़र में बुक उठाने के लिए पाठक को मजबूर कर दे। कवर पेज मल्टी कलर होना चाहिए। मैं किसी प्रोफेशनल डिजाईनर से बुक का कवर पेज डिजाईन करवाने की सलाह दूंगा। कवर पेज प्रिंट करने के बाद इस पर पोस्ट प्रोडक्शन वर्क जैसे यूवी, फॉयल प्रिंटिंग या एम्बोस करवाने से बुक और ज्याद आकर्षक हो जाती है। लेकिन पोस्ट प्रोडक्शन वर्क बुक के सब्जेक्ट को ध्यान में रखकर करवाना चाहिए, क्योंकि इससे बुक की प्रिंट लागत भी बढ़ जाती है।
इनर पेजस
बुक के इनर पेजस की संख्या प्रिंट करने के लिए चार के गुणा में होती है जैसे 48, 96, 120, 176 आदि। हमें मैन्यूस्क्रिप्ट की कम्पोजिंग इसी के अनुसार करना चाहिए।
ISBN नंबर
भारत में राजा राम मोहन रॉय एजेंसी बुक्स के लिए ISBN नंबर देती है। एजेंसी पब्लिशर के अलावा अब व्यक्तिगत रूप से लेखकों को भी सेल्फ पब्लिशिंग करने के लिए ISBN नंबर देती है। ISBN का फुल फॉर्म है International Standard Book Number. आप इसे बुक का आधार नंबर समझिये। बुक के बैक कवर पेज पर यह नंबर प्रिंट किया जाता है। आप ISBN नंबर के लिए राजा राम मोहन रॉय एजेंसी की वेबसाइट https://isbn.gov.in/ पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।
बुक की कीमत
बुक की कीमत प्रिंटिंग लागत की 8 से 10 गुना रखना चाहिए। उदहारण के लिए 6”x9” साइज़ की पेपरबैक बुक की 1000 कॉपी प्रिंट करने की लागत 25 रूपये से 35 रूपये हो सकती है। इस प्रकार बुक की कीमत 250 रूपये से 350 रूपये होनी चाहिए।
बुक प्रिंटिंग
बुक कम्पोजिंग, टाइटल, कवर पेज डिजाईन, ISBN नंबर और बुक की कीमत तय करने के बाद बुक प्रिंट के लिए भेजी जाती है। सामान्यतः बुक 7 से 10 दिन में प्रिंट होकर आ जाती है।
बुक लॉन्चिंग और मार्केटिंग
जैसे ही बुक प्रिंट होकर आपके पास आती है आप सेल्फ पब्लिश्ड लेखक बन गए। अब इस बुक को किसी उपयुक्त कार्यक्रम में लांच कर दें।
लेकिन बुक लांच कर देने भर से बुक बिकने नहीं लगेगी। सबसे कठिन काम अब शुरू होता है और वह है सभी बुक स्टोर और आनलाइन सेल्स स्टोर पर इसे उपलब्ध करना, इसे प्रमोट करना और बेचना। आप अपनी बुक के लेखक और पब्लिशर हैं और अब इसे बेचने के लिए मार्केटिंग मैनेजर भी आपको ही बनाना होगा।
अपने अनुभव के आधार पर बुक बेचने के कुछ तरीके यहाँ बता रहा हूँ।
आप लेखक के रूप में अपनी बुक और स्वयं को प्रमोट करने के लिए वेबसाइट बनाएं।
सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर, इन्स्ताग्राम, यू ट्यूब चैनल में बुक प्रमोट करें
बुक डिस्ट्रीब्यूटर से बात करके बुक को बुक स्टाल में उपलब्ध कराएँ और प्रमोट करें।
ऑनलाइन सेल्स नेटवर्क जैसे अमेज़न, फ्लिप्कार्ट के जरिये बुक सेल करें और पाठकों से रिव्यु पोस्ट करने के लिए रिक्वेस्ट करें।
प्रिंट मीडिया; अख़बार, पत्रिकाओं को बुक गिफ्ट में भेजें और रिव्यु पब्लिश करने के लिए रिक्वेस्ट करें।
ब्लॉग बनाएं बुक का कुछ कंटेंट पोस्ट करें।
आपके मोबाइल में जितने भी नंबर हैं सभी को अपनी खरीद कर पढ़ने के लिए रिक्वेस्ट करें।
अपनी बुक खुद कैसे पब्लिश की जाती है सीखने और सेल्फ पब्लिशड लेखक बनने के लिए अपने दोस्तों और परिवार को पार्टी दें और सेलिब्रेट करें।
बुक पब्लिश करना केवल एक शुरुआत है। एक लेखक के रूप में अपने लक्ष्य को पाने के लिए सेल्फ पब्लिशिंग में आपको ज्यादा पाठक मिल सकते हैं और अपने विषय में स्वयं को एक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
आपको यह समझना जरूरी है कि आपकी बुक आपके लिए क्या करेगी। आप सेल्फ पब्लिशड लेखक बन कर आखिर क्या पाना चाहते हैं। इसकी क्लेअरिटी होने पर विज़न बना कर काम करना होगा। क्लेअरिटी होने से सेल्फ पब्लिशड लेखक बनने के बाद मिलने वाले अवसरों को पहचानना और उनका लाभ उठाना आसान हो जाता है।
पब्लिशड बेस्ट सेलर लेखक बनना है और अपने जीवन में और व्यवसाय में लेखन के जरिए बदलाव लाना चाहते हैं तो सेल्फ पब्लिशिंग लेखन और और इसे बेचने की प्रक्रिया को लगातार सीखना होगा। यह लेख मेरे लिए भी इसी दिशा में एक और कदम है।